ब्रिटिश साम्राज्यवाद में विभाजन के आंसू



@  उमेश यादव

इजराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष में अब तक हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। आम लोग इस संघर्ष की शुरुआत को कुछ हफ्ते पुराना मान सकते हैं। वे कहेंगे कि हमास ने इजराइल पर अचानक हमला कर दिया। जवाब में इजराइल ने भी हमास को निशाना बनाते हुए फिलीस्तीन क्षेत्र में हमला किया। सच यह है कि इजराइल और फिलीस्तीनी समूहों के बीच 50 साल से अधिक समय से संघर्ष चल रहा है। मौजूदा युद्ध से पहले रोजाना इजराइल के नियंत्रण वाले गाजा पट्टी पर दोनों ओर के सैनिक, विद्रोही और आम लोग मारे जाते रहे हैं। इजराइल मध्य पूर्व का देश है। यह 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ के एक प्रस्ताव के कारण अस्तित्व में आया था। तब ब्रिटिश मैंडेट के तहत फिलीस्तीनी क्षेत्र को दो भागों में बांटा दिया गया था। ध्यान देने वाली बात है कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद का इतिहास बंटवारों से भरा पड़ा है। ब्रिटेन ने कई क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में रखा। स्वतंत्र करने से पहले उनका विभाजन भी कर दिया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि नियंत्रण कुछ महीनों का था या कई वर्षों का। भारत ने भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इस रवैये का दंश झेला है। अंग्रेजों ने भारत को बांटकर पाकिस्तान बनाया। हम भारतीय केवल अपने लोगों को दोष देते रहे।  

इतिहासकारों का कहना है कि 20वीं सदी में फिलीस्तीन क्षेत्र मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों, तीनों के लिए पवित्र माना जाता था। इस क्षेत्र पर ऑटोमन साम्राज्य का शासन था। पहले विश्व युद्ध के बाद ऑटोमन साम्राज्य का पतन हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने ब्रिटेन को फिलीस्तीन का प्रशासन अपने नियंत्रण में लेने की स्वीकृति दी। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाजियों ने यहूदियों की सामूहिक हत्याएं कीं। इसलिए यहूदियों के लिए अलग देश की मांग उठने लगी। ब्रिटेन ने फिलीस्तीन क्षेत्र को बांट दिया। इससे इजराइल अस्तित्व में आया। यहीं से इजराइल और फिलीस्तीनी समूहों के बीच संघर्ष शुरू हो गया। इसी क्रम में चरमपंथी समूह हमास फिलीस्तीन को अलग राष्ट्र बनाना चाहता है। इसलिए वह जब-तब इजराइल के खिलाफ छोटे-बड़े युद्ध छेड़ देता है। इजराइल की राजधानी यरुशलम है। यरुशलम सेमिटिक भाषा का शब्द है।  इसका अर्थ ‘शांति का शहर’ है। आज यरुशलम अपने मूल अर्थ से दूर हो चुका है। यरुशलम यहूदी, इस्लाम और ईसाइयों की आस्था का प्राचीन केंद्र है।  संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में यरूशलम को स्वतंत्र दर्जा देने का प्रावधान था, जिस पर अमल नहीं किया गया। इसलिए यरूशलम को कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इजराइल की राजधानी नहीं मानती हैं।

किसी काल में ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज नहीं डूबता था। उसके उपनिवेश दुनियाभर में थे। ब्रिटेन और चीन के बीच 1839 से 1842 तक युद्ध हुआ था। वह युद्ध ब्रिटेन जीता था। चीन को ब्रिटेन के साथ संधि करनी पड़ी थी। संधि के तहत चीन ने ब्रिटेन को 99 साल की लीज पर हांगकांग दे दिया था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन बहुत कमजोर हो गया। वह समझ गया कि उसका उपनिवेशवाद ज्यादा दिन नहीं चलेगा। वह उपनिवेशों को स्वतंत्र करता गया। हांगकांग की लीज भी 1997 में खत्म हो गई। उसी साल ब्रिटेन ने चीन को हांगकांग सौंप दिया। इसके लिए 'एक देश, दो व्यवस्था' की नीति पर समझौता हुआ। यह हांगकांग के लिए स्वायत्ता का दर्जा है। चीन अक्सर इस समझौते का उल्लंघन कर हांगकांग के लोगों पर अत्याचार करता है। भारत और नेपाल के बीच कालापानी क्षेत्र के स्वामित्व को लेकर लंबे समय से विवाद है। यह भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद का दोनों देश को दिया दंश है। ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच 1816 में सुगौली समझौता हुआ था। इसके तहत महाकाली नदी को भारत और नेपाल के बीच की सीमा माना गया था। बाद में यह सीमा विवाद बन गई। अंग्रेज यह विवाद निपटाए बिना ब्रिटेन लौट गए।

ब्रिटिश प्रशासक लार्ड माउंटबेटेन भारत के अंतिम अंग्रेज वायसराय थे। माउंटबेटेन के पूर्वाधिकारी लार्ड लेवल भारत में अधिकतम प्रांतीय स्वायत्त शासन की योजना लाए थे। स्वतंत्रता सेनानी मौलाना आजाद ने अपनी किताब 'इंडिया विंस फ्रीडम' में दावा किया कि उक्त योजना के कारण लेवल मुसीबत में पड़ गए थे। माउंटबेटन ने इस घटना से सबक लिया था। इसलिए माउंटबेटेन ने भारत विभाजन की पहल की थी। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने अपनी किताब 'भारत विभाजन के अपराधी' में लिखा है कि माउंटबेटेन की भूमिका इस अर्थ में सचमुच बड़ी थी कि उन्होंने अपनी सरकार की नीतियों पर बखूबी अमल किया, लेकिन वह महान नहीं था। लोहिया ने तर्क दिया कि सरकारें और फौजें हर स्थिति में एक ही नीति पर नहीं चलतीं। किसी स्थिति का मुकाबला करने के लिए उनके पास हमेशा वैकल्पिक नीतियों से भरे कई तरकश होते हैं। किसी राजनीतिक समस्या को हल करने के लिए कभी-कभी एक दर्जन वैकल्पिक राजनीतिक योजनाएं हो सकती हैं। एक दर्जन वैकल्पिक फौजी योजनाएं भी हो सकती हैं, जिनमें से एक को चुनकर वास्तविक हमले के लिए इस्तेमाल किया जाता है। किसी विदेश मंत्रालय, फौज या सरकार के तरकश में कई तीर रहते हैं। साल 1940 में मोहम्मद अली जिन्ना ने विभाजन के बारे में बोलना शुरू किया था। उसके बहुत पहले से भारत विभाजन की योजना ब्रिटेन के इंडिया ऑफिस में बनाई जा रही होगी। डॉ. लोहिया ने यह भी कहा था कि निश्चय ही अंग्रेज ऐसी योजना बना रहे थे, जिससे भारत छोड़ने के बावजूद उन्हें अधिक लाभ हो। भारत की धरती पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद का यह आखिरी और सबसे ज्यादा शर्मनाक काम था। दरअसल, साम्राज्यवाद की राजनीति में दो-चार लोग या शासक मिलकर लाखों-करोड़ों लोगों की जिंदगी का फैसला करते हैं। दुनिया में हर विभाजन की लगभग यही कहानी है। सांप्रदायिक कट्टरता के शोर में यह कहानी गुम हो जाती है। तबाही से दूर बैठा इंसान राजनीतिक रोमांच पर मुग्ध रहता है। उसके आंसू भी सांप्रदायिकता की धार में बंट जाते हैं।

(लेखक 'सुनो सुनो' के संपादक हैं।)

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