नवरात्र पर कविता : सरस्वती ने शील तो/ लक्ष्मी ने वैभव दे दिया/ शक्ति दुर्गा कालिका से/ क्षमा पृथ्वी से लिया

 

प्रतीकात्मक चित्र।

@ विवेक |

शक्ति की उपासना का प्रथम दिवस। सनातन धर्म में नारी को शक्ति का प्रतीक माना गया है और नव रात्रों में शक्ति के नौ रूपों की उपासना की जाती है। आज की मेरी कविता नारी के सृजन की कल्पना है। आइये शक्ति के इस रूप को मन प्राण से कृतज्ञ हो कर इसकी श्रद्धा से उपासना करें। कविता में नारी की सृष्टि विधाता ने कैसे की, इसकी विवेचना है... आनंद लें कर इस कृति को कृतार्थ करें.....  | 

जब हुई होगी
स्त्री की कल्पना
पृथक ही होगी
विधा की कामना 

सृष्टि को उसकी
हुये होंगे प्रयोजन
दिव्य द्रव-द्रव्यों के
पूरे कर आयोजन 

ओज लेकर सूर्य का
ले चंद्रमा से चानना
भोर से कुछ भाव लेकर
सांझ से ले कामना 

कुमुदिनी के भाव कोमल
मधु से ले ली मृदुलता
धैर्य धरिणी से लिया
ली प्रपातों की प्रखरता

लाज से है रंग पाया
रूप रति से ले लिया
मन से ले ली चपलता
तो स्थैर्य मति ने दे दिया 

शक्ति ले ली साधना की
भक्ति ले ली भावना की
माया से यदि मोह पाया
तप से पाया त्यागना भी 

सरस्वती ने शील तो
लक्ष्मी ने वैभव दे दिया
शक्ति दुर्गा कालिका से
क्षमा पृथ्वी से लिया 

ज्ञान पाया शोध से
और बोध से ले ली प्रमा
ज्वार से यदि क्रोध तो
अंकवार से ले ली क्षमा 

सभी प्रतिभाओं
कलाओं को मिलाकर
देवी सा सौंदर्य
निर्मित हुआ जाकर 

नियति ने उत्पत्ति करने का
सफल प्रकरण किया
आचरण दे सृष्टि का
नारीत्व का विवरण किया 

            *

छैल छंद छवि देख
देव सभी विस्मित हुए
दृग चढ़ हृदय प्रवेश
भाव सभी मुखरित हुए 

           * 

शारदीय नवरात्र की सभी को अशेष मंगलकामनायें...

***

टिप्पणियाँ

  1. सादर आभार इस कवित्त प्रयास को अपनी ई-पत्रिका में सम्मिलित कर इसे सम्मान देने हेतु। मंगलकामना

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