श्रद्धांजलि : स्वस्थ हास्य से सत्य पर प्रकाश डालने वाले राजू श्रीवास्तव को हमने देखा और सुना था...
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राजू श्रीवास्तव (1963-2022) |
@ उमेश यादव |
मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव (59) नहीं रहे। दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। पिछले महीने दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें एम्स में भर्ती किया गया था। वे होटल के जिम में वर्कआउट करते हुए बेहोश हो गए थे।
राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्यप्रकाश श्रीवास्तव था। कहते हैं कि उन्होंने खुद ही अपना नाम राजू रख लिया था। वे कहते थे कि राजू किसी बच्चे का नाम लगता है। वे हमेशा बच्चों की तरह रहना चाहते हैं। राजू स्वभाव से बच्चे ही थे। उन्होंने अपने असली नाम के अनुरूप स्वस्थ हास्य से समाज के सत्य पर प्रकाश भी डाला। वे यह कार्य जीवनभर पूरी ईमानदारी से करते रहे।
राजू श्रीवास्तव का जन्म 1963 में कानपुर में कवि रमेश श्रीवास्तव उर्फ बलई काका के यहां हुआ था। राजू को बचपन से फिल्मी सितारों की मिमिक्री करने का शौक था। कॉमेडी की दुनिया में उन्हें सबसे ज्यादा नाम अभिनेता अमिताभ बच्चन की मिमिक्री करने से मिला। राजू ने तब कॉमेडी शुरू की थी, जब यूट्यूब, टीवी, सीडी, और डीवीडी नहीं हुआ करती थीं। उनका पहला कॉमेडी स्केच 'हंसना मना है' भी एक ऑडियो कैसेट के रूप में सामने आया था।
राजू ने एक बार कहा था, '1980 के दशक में केवल एक टीवी चैनल दूरदर्शन हुआ करता था। मैं उसी जमाने का आदमी हूं। तब डीवीडी, सीडी नहीं थे। पेन ड्राइव भी नहीं था। तब हमारे ऑडियो कैसेट रिलीज होते थे। ये कैसेट चलाते चलाते अक्सर फंस जाते थे। लोग इन्हें पेंसिल से घुमाकर ठीक करते थे। यह जानकार बड़ी गुदगुदी होती थी कि हम जिस रिक्शे में बैठे हैं, उस रिक्शे में हमारा कैसेट बज रहा है। लेकिन सुनने वाला हमें जानता ही नहीं था। कभी-कभी हम उसे छेड़ने के लिए कह भी देते थे कि यह क्या सुन रहे हो यार। बंद करो। कुछ अच्छा लगाओ। इस पर रिक्शे वाला कहता था कि अरे नहीं, भईया, कोई श्रीवास्तव है, बहुत हंसाता है।'
राजू ने एक किस्सा और साझा करते हुए कहा था, 'हम ट्रेन में अपने एक किरदार मनोहर के अंदाज में किसी को शोले की कहानी सुना रहे थे। ऊपर की बर्थ पर एक चाचा सो रहे थे। हमें सुनकर वे नीचे उतरे और बोले कि ऐसा है, तुम ये जो कर रहे हो, इसको और ढंग से करो। इसमें थोड़ी और मेहनत करके इसको जो है...कैसेट बनवाओ, बंबई में जाओ। गुलशन कुमार का होगा स्टूडियो वहां। तुम वहां सुनाओ अपना ये...तुम्हारा भी कैसेट आएगा। एक श्रीवास्तव का कैसेट निकला है, उससे आइडिया लो।'
राजू 1982 में मुंबई पहुंचे थे। उन्होंने शुरुआती दौर में ऑर्केस्ट्रा के साथ काम किया। पहली बार फीस के रूप में मात्र 100 रुपए मिले थे। पहली फिल्म सलमान खान की 'मैंने प्यार किया' थी। इसके अलावा कई और फिल्में, जैसे- बाजीगर, बॉम्बे टू गोवा, आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपय्या, मिस्टर आजाद में भी काम किया।
राजू को देशव्यापी प्रसिद्धि 'द ग्रेट इंडियन लॉफ्टर चैलेंज' से मिली। हालांकि, वे इसे बड़ा मंच नहीं मानते थे। उन्हें कई लोगों ने इस प्रोग्राम में शामिल होने से रोका था। कहा था- ऐसे प्रोग्राम में मत जाओ, जिसमें जॉनी लीवर भी नहीं है, जावेद जाफरी भी नहीं है। लेकिन वे अमिताभ बच्चन को आदर्श मानते हुए तैयार हुए कि जो दिखता है वो बिकता है। जब लॉफ्टर शो में पहुंचे तो बाकी प्रतियोगी उन्हें जज समझ रहे थे। उन्होंने राजू की ऑडियो कैसेट सुनी थी। वे राजू को अच्छी तरह जानते थे। बाद में इस प्रोग्राम ने सभी सहभागी कॉमेडियन को शोहरत दिलाई। राजू ने इन बातों का जिक्र अपने इंटरव्यू में किया था।
राजू जैसी शख्सियत कम ही होती है। आम आदमी का यह चेहरा, कब लाखों-करोड़ों लोगों के लिए खास हो गया, यह शायद राजू भी नहीं जानते होंगे। उन्होंने बिग बॉस सीजन में भी हिस्सा लिया था। पत्नी के साथ 'नच बलिए' डांस शो में भी शामिल हुए थे। कानपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने के इरादे से समाजवादी पार्टी में भी शामिल हुए थे। लेकिन कुछ समय बाद ही इस पार्टी से किनारा कर लिया था। उन्होंने कहा था कि स्थानीय स्तर पर उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन नहीं मिल रहा है। बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए थे।
बचपन में हमारे जैसे कितने ही लोगों ने राजू श्रीवास्तव की 'ऑडियो कैसेट' सुनी होगी। हम उनकी एक-एक कैसेट इतनी बार बजाते कि वह फंसने लगती। हम भी उसे पेंसिल से ठीक करते। कई बार ठीक करने के चक्कर में पूरी रील ही खराब कर देते। फिर दोस्तों से दूसरी कैसेट मांगकर लाते। हां, 'राजू सर' हमारा बचपन भी उसी दौर में गुजरा है, जब पैन ड्राइव भी नहीं था। टीवी चैनलों के नाम पर सिर्फ दूरदर्शन था। 'द ग्रेट इंडियन लॉफ्टर चैलेंज' तो बहुत बाद में आया। आप उससे कई साल पहले हमारा दिल जीत चुके थे।
आपके हास्य, आपके जीवन दर्शन, आपके सत्य को प्रणाम। श्रद्धांजलि!
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