मतदान से पहले एक मतदाता का पत्र...

 


© उमेश यादव

लोग पूछ रहे हैं कि किसे वोट देंगे? प्रश्न सुनकर घबरा रहा हूं। अपने देश के लिए ऐसा क्या अच्छा कर दिया कि वोट देने के अधिकार का इस्तेमाल कर सकूं? हम सब... हां! हम सब..., एक राजनीतिक कुव्यवस्था की कठपुतली बने हुए हैं। चुनाव रैलियों में शामिल समर्थकों, कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों की कीमत तय है। किसी को रोज 500 रुपये मिले, किसी को 5000 रुपये। निश्चय ही ऐसी रोजी देने वाले लोग वोटों की कीमत भी बांट चुके होंगे। एक-एक उम्मीदवार सैकड़ों करोड़ रुपये पानी की तरह बहा रहा है। विचार कीजिए- इतना धन कहां से आ रहा है? सड़कों, पुलों, इमारतों, विभिन्न परियोजनाओं में मिली अनाप-शनाप अवैध दलाली से..। क्या कभी 'चुनाव जीतने के अवैध अर्थशास्त्र' को जाना-समझा है?

- वोटर अब अवैध दलाली को अनुचित नहीं मानता। वह खुद भ्रष्ट हो गया है। भ्रष्ट होना उसकी मजबूरी है। वह सरकारी कार्यालयों में अवैध दलाली खिलाकर छोटे-बड़े कागजात बनवाता है। रिश्वत देकर नौकरी पाता है। विधायिका, न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और खबरपालिका में भ्रष्ट दलाल खुलेआम घूम रहे हैं। ये सभी भ्रष्ट लोग भी वोट देने जाएंगे। तर्क-कुतर्क देकर 'अपने सबसे अच्छे उम्मीदवार' को चुनेंगे। मेरी नजर में देश की सबसे बड़ी समस्या अवैध दलाली, रिश्वतखोरी और पद का दुरुपयोग ही है। इनके खिलाफ न मतदाता कुछ करता है, न नेता। कृत्रिम नैतिकता के भाषणों का आवरण ओढ़ने वाले कई हैं। जाति-पांति, धर्म, भाषा, वर्ग देश की समस्याएं नहीं हैं। राजनीतिक कुव्यवस्था ने इन्हें 'हथियार' बना लिया है। इसका इस्तेमाल हर राजनीतिक दल करता है। 

- अंग्रेज अफसर बहुत भ्रष्ट थे। लेकिन मजाल है कि उनके राज में कोई भारतीय अवैध दलाली या रिश्वत ले सके। अगर किसी भारतीय ने अवैध दलाली खाई, तो उसे जान से भी हाथ धोना पड़ता था। ऐसा महसूस होता है कि हमारे लोग इस बात के लिए तड़प रहे थे कि कब-कब देश स्वतंत्र हो और वे भ्रष्टाचार करने के लिए टूट पड़ें। पिछले 50-60 साल से देश का यही हाल है। आप जाति-पांति, धर्म, भाषा, वर्ग, दक्षिण-वाम, पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, अमेरिका गाते रहें, क्या फर्क पड़ता है? देश को हर रोज भ्रष्टाचार निगल रहा है।  

- कभी ठंडे मन से सोचिए कि यह देश किनका था और किनका है? मेरी कविता 'नींव' की पंक्तियां हैं- 

यह देश उनका था 

जो इसके लिए शहीद हो गए

यह देश उनका है

जो इसके लिए शहीद होंगे...

क्षमा करना भगत सिंह... हम आपकी और आपके साथियों की शहादत का मान नहीं रख सके।


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