हिंदी विश्वविद्यालय में ये दिन भी देखने थे...
© उमेश यादव
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में विवादों का तूफान आसानी से नहीं थमेगा। अब तक के हालात यही कह रहे हैं। करीब पौने दो महीने तक शांति दिखी। अब फिर यह विश्वविद्यालय सुर्खियों में आ गया है। अगस्त के दूसरे पखवाड़े में विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने एक विवाद के बाद त्याग-पत्र दे दिया था। कई विद्यार्थी शुक्ल के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। शुक्ल ने विश्वविद्यालय की कुलाध्यक्ष राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा भेज दिया था। राष्ट्रपति ने इस्तीफा स्वीकार कर लिया था। विश्वविद्यालय का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे, इसलिए प्रो. एल कारूण्यकरा ने कार्यवाहक कुलपति का पद संभाला था। विश्वविद्यालय के कुलसचिव कादर नवाज खान ने पत्र जारी कर यह जानकारी सार्वजनिक की थी। तब यह समझ आ रहा था कि सबकुछ ठीक हो गया है। आमतौर पर विश्वविद्यालय के प्र- कुलपति अत्यंत कम चर्चा में रहते हैं। इस बार हिंदी विश्वविद्यालय के प्र-कुलपति चर्चा में आ गए। इस विश्वविद्यालय की अनोखी परंपरा है। यहां नए कुलपति के कार्यों का पहले दिन से प्रचार-प्रसार शुरू हो जाता है। इसके लिए जनसंपर्क ही नहीं, अन्य विभाग भी सक्रिय हो जाते हैं।
कार्यवाहक कुलपति प्रो. कारूण्यकरा को पहले दिन से प्रसिद्धि दी जाने लगी थी। यह माना जाने लगा था कि कारूण्यकरा ही आगे जाकर पूर्णकालिक कुलपति बना दिए जाएंगे। कारूण्यकरा के समर्थकों की यह उम्मीद धरी की धरी रह गई। विश्वविद्यालय की कुलाध्यक्ष राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में आईआईएम नागपुर के संचालक डॉ. भीमराय मेत्री को हिंदी विश्वविद्यालय का अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया। विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर डॉ. मेत्री के परिचय में कुलपति लिखा गया है। साफ है कि विश्वविद्यालय से शुक्ल के जाने के बाद शांति नहीं थी। अंदर ही अंदर बेचैनी बढ़ रही थी। इसलिए कारूण्यकरा न्याय के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ पहुंच गए। आखिर वे 16 वर्ष विश्वविद्यालय में सेवा कर चुके हैं। कारूण्यकरा ने कुलपति पद पर डॉ. मेत्री की नियुक्ति को कोर्ट में चुनौती दे दी। सूत्रों के अनुसार याचिका में दावा है कि नियमानुसार कुलपति के इस्तीफे के बाद प्र-कुलपति को अवसर मिलेगा। प्र-कुलपति ही कुलपति का पद संभालेंगे। इसलिए डॉ. मेत्री की नियुक्ति नियमों का उल्लंघन है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता का पक्ष सुना। उसके बाद हिंदी विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष के रूप में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को नोटिस जारी किया। कुलाध्यक्ष को 29 नवंबर तक जवाब देने का आदेश दिया। संभवत: भारत में किसी विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष को अदालत का ऐसा नोटिस पहली बार आया होगा। कानून विशेषज्ञ कहते हैं कि राष्ट्रपति देश की किसी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं है। यही कारण है कि इस मामले में राष्ट्रपति के रूप में नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष के रूप में द्रौपदी मुर्मु को नोटिस जारी किया गया है। फिर भी यह मामला अचंभित करता है। इसलिए लोग कहेंगे ही कि हिंदी विश्वविद्यालय में अब यह ही देखना रह गया था।
'जन गण मन' स्तंभ में ही हम आपको हिंदी विश्वविद्यालय के पुराने विवादों के बारे में बता चुके हैं। इस विश्वविद्यालय में अब तक पांच पूर्णकालिक कुलपति हुए हैं। पांचों किसी न किसी विवाद के कारण चर्चा में रहे। कारूण्यकरा और मेत्री को कुलपति का अतिरिक्त प्रभार मिला। वे भी विवादों में आ गए। इस विश्वविद्यालय का कुलगीत है- 'चेतना का दीप है यह/ ज्ञान का हिमालय/हिंदी विश्वविद्यालय।' ऐसे में विश्वविद्यालय को किसकी नजर लग गई? इस विश्वविद्यालय में किस तरह के विचारों का प्रवाह बढ़ रहा है कि यह आए दिन विवादों में आ जाता है? इन विवादों के कारण राष्ट्रपति को भी विश्वविद्यालय में कदम रखने में संकोच होता है। पहले समाचार आता है कि अमुक कार्यक्रम के लिए राष्ट्रपति विश्वविद्यालय में आने वाली हैं। बाद में कहा जाता है कि दौरा टल गया है। पूर्व कुलपति शुक्ल के विवाद के समय भी यही हुआ था। इस बार 1 दिसंबर को राष्ट्रपति का नागपुर आने का कार्यक्रम तय है। राष्ट्रपति नागपुर में शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के अमृत महोत्सव में उपस्थित रहेंगी। कार्यक्रम की तैयारी चल रही है। कार्यक्रम स्थल एवं कॉलेज परिसर को चमकाया जा रहा है। सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की जा रही है। हालांकि, अब आशंका यही है कि विश्वविद्यालय के विवाद के कारण एक बार फिर राष्ट्रपति का दौरा रद्द न हो जाए। हालांकि, होना यह चाहिए कि विश्वविद्यालय से जुड़ी नामी हस्तियां नागपुर आने के बाद वर्धा अवश्य जाएं। पिछली बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु हिंदी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल होने वाली थीं। तब तत्कालीन कुलपति शुक्ल ने कहा था कि राष्ट्रपति का विश्वविद्यालय आने का कार्यक्रम अपरिहार्य कारणों से रद्द हुआ है। हालांकि, दूसरी ओर यही चर्चा थी कि विश्वविद्यालय में आंतरिक विवाद के कारण राष्ट्रपति को अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा है।
बहरहाल, राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलाध्यक्ष होते हैं। वे इन विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों के लिए संबंधित केंद्रीय मंत्रालय से सुझाव लेते हैं। कभी-कभी विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव का कारण बन जाती है। नियुक्तियों में राजनीतिक प्रभाव, भेदभाव और उत्कृष्टता की उपेक्षा के आरोप लगते हैं। विश्वविद्यालयों में राजनीतिक ध्रुवीकरण की बात सामने आती है। हिंदी विश्वविद्यालय के नवनियुक्त 'कुलपति' डॉ. मेत्री ने पदभार संभालते ही कुछ संकल्प रखे। उन्होंने कहा कि वे विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने के लिए मिलकर काम करेंगे। डॉ. मेत्री के वक्तव्य के बाद उम्मीद है कि सब बेहतर होगा। विश्वविद्यालय के साथ गांधी का नाम जुड़ा है।
(लेखक 'सुनो सुनो' के संपादक हैं।)
('राष्ट्र पत्रिका' में भी प्रकाशित।)
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