अमीर हो या गरीब 23 की रात ने सभी को सताया...
दिन भर उत्साह था, महालक्ष्मी का यानी गौराई का दूसरा दिन।
सर्वत्र गणपति दर्शन, महाप्रसाद का कार्यक्रम, दौड़-भाग थी। किसी को कल्पना नहीं थी कि इतने हर्ष के दिन की रात भयंकर होगी।
कितने लोगों, बस्तियों को अचानक आई अतिवृष्टि ने तबाह कर दिया।
आज सजाए गए घर में अगली सुबह अंधेरे की थी।
23 सितंबर 2023 की संध्या आकाश में काले बादलों की सभा चल रही थी।
बूंद बूंद बारिश बढ़ती जा रही थी। आकाश में ऊंची उड़ान भरने वाले पक्षी भी शीघ्र ही घर लौटने लगे थे। गणपति बाप्पा का दिन होने के कारण सर्वत्र खुशी का वातावरण था। छुट्टी के कारण बच्चों की धमाल थी...
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रात 12:30 बजे के बाद बारिश ने तेजी पकड़ी... बिजली की कड़कड़ाहट बढ़ने लगी। इससे पहले नागपुर वासियों को बादल फटने का अनुभव नहीं था। थोड़ी देर में केदारनाथ की याद आ गई।
एक भी क्षण बिजली का तांडव नहीं थमा, बारिश की रिमझिम तेज हो रही थी, 175 मिमी से अधिक बारिश हो चुकी थी।
घड़ी के कांटे रात्रि 1-2-3 बजे की ओर बढ़ चुके थे। मौसम का कहर हर सेकंड में दिख रहा था। मेरे जीवन में मैंने नागपुर में इससे पहले कभी ऐसी भयानक बारिश नहीं देखी।
इससे पहले 2017-18 में दो-तीन बार इससे कम, लेकिन भयावह बारिश हुई थी। उस समय मैं और मेरी मित्र शीतल प्रियदर्शनी कॉलेज में थे। वहां से हमारा घर 20 मिनट के अंतर पर था। तब अतिवृष्टि के बीच अपने जीवन को संभालते हुए हमने वह यात्रा ढाई घंटे में पूरी की। स्वामी की कृपा के कारण हम घर पहुंचे। इसके बावजूद तब बारिश इतने रौद्र रूप में नहीं थी, जो शुक्रवार रात को हुई।
23 की रात कोई नहीं भूल सकता...
मेरे पति के निकट मित्र मनीष वडांद्रे अंबाझरी, डागा ले आउट में रहते हैं। हम उनसे मिलने आए थे। वहां के कुछ प्रत्यक्ष अनुभव साझा कर रही हूं।
सुबह लगभग 5 बजे उन्हें पता चला कि घर में डेढ़ फुट पानी भर गया है। सभी तरफ फोन बज रहे थे। उन्होंने आवश्यक कागज (जो हाथ में आ सके) ऊंचाई पर रख दिए। उसके बाद परिवार के साथ घर की दूसरी मंजिल पर गए। आसपास के परिसर में एक घंटे में पानी चार-साढ़े चार फुट तक चढ़ गया था। घर में सभी इलेक्ट्रॉनिक्स सामान, कपड़े, फर्नीचर भीग गए थे।
उनके घर के सामने जल्द ही कोई शादी होने वाली थी। शादी संबंधित और किराने का लाखों रुपए का सामान पानी में डूब गया था। घर के सामने गीले फर्नीचर सड़ी अवस्था में थे। रोज दो-तीन ट्रक माल फेंका जा रहा था। लोगों का लाखों रुपए का नुकसान हुआ। कोई कुछ न कर पा रहा था।
अंबाझरी परिसर के एक फ्लैट में दादा-दादी का जोड़ा 'जल समाधि' में चला गया। सुबह तक पानी पहली मंजिल तक पहुंच गया था।
झोपड़पट्टी बह गई, सड़कें पानी में डूब गईं। खिलौने की गाड़ियों की तरह 300-400 असली गाड़ियां पानी में बहती हुईं एक छोर से दूसरे छोर में चली गईं। सड़कों पर 4-5 फुट पानी भर गया। यहां नावें चलाकर लोगों को बचाया गया।
लोगों का खूब मानसिक और आर्थिक नुकसान हुआ। कुछ लोगों ने जरूरतमंद लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की।
शालाओं में छुट्टी घोषित कर दी गई। रेलवे स्टेशनों, बस स्थानकों, टेकड़ी के गणपति, यशवंत स्टेडियम के पीछे, लकड़गंज, बर्डी, नाग नदी परिसर की पुरानी बस्ती, गली-गली जलमय हो गई थी। जल निकासी में डेढ़ दिन लग गए।
इन सब बातों का कौन और कितना जवाबदार है?
क्या मौसम विभाग को अनुमान नहीं था?
नागपुर के ड्रेनेज सिस्टम में सुधार क्यों नहीं? नाग और पीली नदियों के परिसर के लोगों को इतने वर्षों में सुरक्षित वातावरण क्यों नहीं मिला?
सभी प्रश्न एक पिटारे में बंद हो गए और बारिश में बह गए? सही उत्तर आम लोगों को कभी नहीं दिया जाएगा।
आखिर में इतना ही... कि अमीर हो या गरीब 23 की रात ने सभी को सताया।
@ प्रा. श्वेता प्र. येणोरकर
- एमटेक (इलेट्रॉनिक्स), नागपुर
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Es tabahi k liye insan khud jimedar hai janglo ko kat diya gaya nalo Pe atikraman janta ne kiya ab tabahi hone par nuksan ki bharpai sarkar se kar raha hai pawani jptka y
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