रामटेक : गुगुलडोह में प्रस्तावित मैंगनीज खदान का क्यों हो रहा विरोध? जानिए प्रमुख बिंदु

@ उमेश यादव |

रामटेक | तहसील की गुगुलडोह (मानेगांव) में प्रस्तावित मैंगनीज खदान का विरोध हो रहा है। प्रोजेक्ट के विरोध में अदालत में याचिका दायर की गई है। वहीं, इस पर सोमवार को गुगुलडोह में जनसुनवाई भी हुई। स्थानीय लोगों, नेताओं एवं एनजीओ प्रतिनिधियों ने प्रस्तावित खदान का जमकर विरोध किया। कांग्रेस नेता एवं पंचायत समिति रामटेक के पूर्व उपसभापति उदय सिंह उर्फ गज्जू यादव ने कहा कि राजनीतिक दबाव में आकर निजी कंपनी को खदान लीज पर देने की कवायद चल पड़ी है। वहीं, एनजीओ अजनिवन ने प्रस्तावित प्रोजेक्ट के विरोध में कई तर्क दिए हैं। आइए प्रस्तावित प्रोजेक्ट को एनजीओ के तर्क के आधार पर समझें।

- प्रस्तावित मैगनीज खनिज खदान रामटेक तहसील के गुगुलडोह (मानेगांव) में है। प्रकल्प प्रस्तावक छत्तीसगढ़ की मेसर्स शांति जीडी इस्पात एंड पावर प्रा. लि. है। 105 हेक्टर खदान की लीज 50 साल के लिए मांगी गई है। यह प्रस्ताव जून 2018 में दिया गया थ, जिसकी अवधि 2021 में समाप्त हो चुकी है।

-  प्रस्तावित खदान की 105 हेक्टर भूमि में 99.95 हेक्टर वन भूमि एवं 5.05 हेक्टर सरकारी है। भूमि उपयोगकर्ता एजेंसी ने फॉरेस्ट क्लियरेंस के लिए निवेदन किया है। वन विभाग ने निवेदन आगे बढ़ाया है। अब निवेदन राज्य सरकार के पास लंबित है।

- प्रकल्प प्रवर्तक का कहना है कि उक्त खदान के लिए 36 हजार पेड़ काटे जाएंगे। हालांकि, क्षेत्र को देखने से स्पष्ट है कि यह आंकड़ा बहुत कम बताया गया है। अगर प्रस्ताव को मंजूरी दी गई तो देशी प्रजाति के लगभग 2 लाख पेड़ काटे जाएंगे। इस संदर्भ में संलग्न लैंडस्कैप फोटो में किसी भी प्रकार का ग्राउंड वेरिफिकेशन नहीं किया गया है। जंगल मिश्रित प्रकृति का है। प्रस्तावित खनन क्षेत्र में औषधीय पौधे और अन्य उपयोगी पेड़ हैं, जिन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए। 

- प्रस्तावित खदान क्षेत्र में पेंच व्याघ्र प्रकल्प एवं नवेगांव नागझिरा व्याघ्र प्रकल्प के बीच प्रमुख वन्यजीवों का अधिवास है। यह बाघ, तेंदुए, पैंगोलिन, भालू  एवं अन्य शाकाहारी वन्यप्राणियों की उपस्थिति वाला महत्वपूर्ण टाइगर कॉरिडोर है। प्रस्तावित प्रकल्प से कॉरिडोर को ऐसी क्षति होने की आशंका है, जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकेगी।

- क्षेत्र के खिंडसी सहित दो तालाबों से कृषि के लिए पानी मिलता है। प्रस्तावित प्रकल्प से सिंचन स्त्रोत का नुकसान होगा। क्षेत्र के किसान संकट में आ जाएंगे। यह जंगल अनमोल है। प्रस्तावित प्रकल्प से केवल 50 लोगों को रोजगार मिलेगा, वह भी दैनिक मजदूरी के स्तर का।

- इस खदान का लीज क्षेत्र, प्रकल्प 'श्रेणी- ए' में है । इसे विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (गैर कोयला खदान), केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) नई दिल्ली से पर्यावरण मंजूरी लेना आवश्यक है । पर्यावरण निर्धारण समिति तथा केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (EAC, MoEF&CC) ने दिनांक 16 दिसंबर 2021 की फाइल क्रमांक IA-J-11015/58/20211A-II (NCM) द्वारा प्रकल्प के लिए पर्यावरण प्रभाव निर्धारण / पर्यावरण प्रबंधन नियोजन (EIA/EMP) अध्ययन हेतु विशिष्ट संदर्भ शर्तें (ToR) एवं मानक ToR की अनुशंसा की है।

- इस प्रस्ताव को सहायक वनसंरक्षण अधिकारी (ACF) अतुल देवकर ने दिसंबर 2021 में वन्यजीव विभाग की स्वीकृति दी है। उसी तरह उप वनसंरक्षण अधिकारी (DCF) प्रभुनाथ शुक्ला ने वन्यजीव स्वीकृति की अनुशंसा की है । भारतीय वन्यजीव संस्था (WII) को इस प्रस्ताव पर फरवरी 2022 में तकनीकी राय देनी थी । उपरोक्त दोनों अधिकारियों की अनुशंसा की ओर प्रधान मुख्य वनसंरक्षण अधिकारी (PCCF) नागपुर कार्यालय ने ध्यान नहीं दिया, जो यह दर्शाता है कि उन्हें स्वीकृति देने की जल्दबाजी थी। इस बीच, राज्य में नई सरकार ने असंवैधानिक रूप से राज्य व वन्यजीव बोर्ड के स्वतंत्र सदस्यों को हटा दिया। फिर राज्य वन्यजीव मंडल (SBWL) की 19 वीं और 20 वीं बैठकें आयोजित की, जहां उन्होंने कई खदानों के प्रस्तावों को मंजूरी दी ।

- चंद्रपुर वन प्रशिक्षण अकादमी द्वारा अनुमोदित पर्यावरण तथा वन्यजीवन नुकसान भरपाई के उपाय (Mitigation Measures) भी धोखाधड़ी है। यह स्कूली बच्चों को सिखाने जैसा कुछ है । जैसे कृत्रिम पक्षी घोंसले बनाना आदि । अकादमी उक्त उपायों के लिए अनिवार्य निकाय या विशेषज्ञ संस्था भी नहीं है।

- दस्तावेजों से साफ पता चलता है कि वन अधिकारियों ने खदान को मंजूरी देने में अनेक अनियमितताएं कीं । मंजूरी स्थानीय राजनेताओं के दबाव में दी गई, जिन्हें वन्य जीवन और प्रकृति के बारे में कोई जानकारी नहीं है | प्रकल्प प्रवर्तक को वन संरक्षण का ज्ञान नहीं है ।

- काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या शुरु से संदिग्ध है । प्रस्तावित क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण की योजना लगभग 350 किलोमीटर दूर टेम्भुरदरा जिला यवतमाल में बनाई गई है, जो कि बाघ मुक्त है । यह कहना गलत नहीं होगा कि यह क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के नाम पर क्रूर मजाक है। पेड़ रामटेक तहसील के कटेंगे और 350 किलोमीटर दूर यवतमाल जिले में लगेंगे, यह काफी निंदनीय है।

- वन संरक्षण अधिनियम (FCA) के तहत वन मंजूरी के लिए प्रस्ताव अब अग्रेषित किया गया है। यह महाराष्ट्र शासन के राज्यस्तर पर प्रलंबित है, जहां से यह मंजूरी बाद, आगे की मंजूरी संबंधी कार्यवाही के लिए केंद्र में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) के पास जाएगा । 

- महत्वपूर्ण बात यह है कि रामटेक तहसील आदिवासी बहुल क्षेत्र है। जहां यह मैंगनीज की खदान प्रस्तावित है, वहां आदिवासियों के आराध्य देवता भगवान 'केजबाराजा', 'भाजीमोकास्या', 'पांढरादेव' तथा 'मोगरकसा' उपासना स्थल सरकार से 'क' दर्जा प्राप्त तीर्थ क्षेत्र हैं। खदान का कार्य मंजूर किया गया तो यहां के आदिवासियों का यह श्रद्धा स्थान तोड़ दिया जाएगा। इससे आदिवासी समुदाय में असंतोष उत्पन्न होगा।

- पहले एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया था। प्रस्ताव में कहा गया था कि मैंगनीज ओर इंडिया लिमिटेड (मॉयल) यहां खदान शुरू करे। प्रस्ताव को यह कहकर खारिज कर दिया गया था कि यहां काफी निचले स्तर का (Low Grade) मैंगनीज ही निकल सकता है। सवाल है कि अब इसका ग्रेड कैसे बढ़ गया? 

- केंद्र सरकार सरकारी खदान शुरू करती तो स्थानीय लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार तथा अन्य सुविधायें उपलब्ध होतीं। निजी कंपनी यह सब नहीं देगी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण इसी क्षेत्र में चोखाला, किरणापुर क्षेत्र के स्थानीय लोगों से पूछा जा सकता है, जहां निजी कंपनी को खदान लीज पर दी गई।

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