आवरण कथा : दिल्ली नगर निगम का चुनाव जीती आम आदमी पार्टी, पर क्या मेयर बना पाएगी?

@ सुनो सुनो नेटवर्क |

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) का चुनाव आम आदमी पार्टी ने जीत लिया है। यहां 15 साल से भाजपा की सत्ता थी। एमसीडी के एकीकरण के बाद पहली बार चुनाव हुए। इससे पहले ये तीन हिस्सों - नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन और ईस्ट दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में बंटी हुई थी। इस साल मार्च महीने में केंद्रीय कैबिनेट ने एमसीडी के एकीकरण पर मुहर लगाई थी।

एकीकरण के बाद वार्डों की संख्या 272 से घटकर 250 कर दी गई। इसमें आम आदमी पार्टी (आप) को 134, भाजपा को 104, कांग्रेस को 9 सीटें मिली हैं। साल 2017 के एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी को महज 48 सीट मिली थीं। एमसीडी चुनावों में आप ने स्थानीय मुद्दों को चुनाव में भुनाने की कोशिश की। इसके लिए गंदगी को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया। इस चुनाव में भाजपा ने स्थानीय मुद्दों पर बात नहीं की, जिससे उसे नुकसान हुआ। इसके बदले भाजपा ने चुनाव में सत्येंद्र जैन को जेल के अंदर सेवाएं देने का मुद्दा बनाया। शराब घोटाले का आरोप लगाया। मनीष सिसोदिया का नाम उछाला। दिल्ली एमसीडी में 15 साल से भाजपा थी, लेकिन उन्होंने अपनी उपलब्धियों को नहीं बताया। इसका फायदा आप को मिला।

भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा, रमेश बिधूड़ी, हंसराज हंस और मीनाक्षी लेखी के लोकसभा क्षेत्रों में पार्टी को नुकसान हुआ है। साल 2017 के एमसीडी चुनाव में भाजपा को 39 प्रतिशत वोट मिले थे। पांच साल बाद भी उसमें कमी नहीं आई है, लेकिन सीटें जरूर कम हुई हैं। वहीं कांग्रेस का वोट शेयर 21 प्रतिशत से घटकर 11 प्रतिशत पर आ गया है। कांग्रेस का यह घटाव आम आदमी पार्टी में जाकर जुड़ा है।

आप पार्टी ने यह करके दिखाया है कि भाजपा को हराया जा सकता है। उसके लिए संगठित होकर एजेंडा पर बात करनी होगी। हालांकि, इस जीत से यह कहना जल्दबाजी होगी कि अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो गए हैं। आप का लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है। एमसीडी चुनाव और लोकसभा चुनाव में जमीन आसमान का फर्क होता है। एमसीडी चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। वहीं, लोकसभा चुनाव में केंद्र और प्रधानमंत्री के प्रदर्शन को देखा जाता है। 

एमसीडी चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद भी मेयर आम आदमी पार्टी का होगा, इसे लेकर संशय बना हुआ है। एमसीडी का मेयर वोटिंग से चुना जाएगा। इसमें 250 चुने हुए पार्षदों के अलावा दिल्ली के तीन राज्यसभा और सात लोकसभा सांसद भी वोट करेंगे। इसके बाद दिल्ली के उपराज्यपाल 12 सदस्यों को नॉमिनेट करते हैं जो मेयर चुनने के लिए अपने वोट का इस्तेमाल करते हैं। एमसीडी चुनाव में चुने हुए पार्षद पार्टी के सदस्य नहीं होते हैं। कोई भी पार्षद किसी भी पार्टी का समर्थन कर सकता है। उन पर दल बदल कानून लागू नहीं होता है। ऐसा पहले भी हुआ है कि एमसीडी में बहुमत किसी पार्टी को मिला हो और मेयर किसी दूसरी पार्टी ने बनाया हो। 

दिल्ली में सभी सात लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। लेकिन कुछ सीटों पर एमसीडी चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। इनमें प्रवेश वर्मा, रमेश बिधूड़ी, हंसराज हंस और मीनाक्षी लेखी की लोकसभा सीटें शामिल हैं। नई दिल्ली से मीनाक्षी लेखी के क्षेत्र में 25 सीटें आती हैं, जिसमें से भाजपा को सिर्फ 5 सीटें मिली हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी ने यहां से 20 सीटों पर जीत दर्ज की है। पश्चिम दिल्ली से प्रवेश वर्मा की सीट का भी यही हाल रहा। यहां 38 वार्डों में से 24 पर आम आदमी पार्टी को जीत मिली। वहीं, भाजपा के खाते में सिर्फ 13 सीटें आईं। इसके अलावा दक्षिणी दिल्ली से रमेश बिधूड़ी के इलाके में 37 में से भाजपा को 13 और आप को 23 सीटें मिली हैं। उत्तर पश्चिमी दिल्ली से भाजपा सांसद हंसराज हंस की सीट पर एमसीडी के 43 वार्ड हैं। इसमें भाजपा को 14 सीट और आप को 27 सीटें मिली हैं।

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