रामटेक : गुगुलडोह में प्रस्तावित मैंगनीज खदान का विरोध, जनसुनवाई में जमकर हंगामा

@ गुगुलडोह से लौटकर उमेश यादव |

रामटेक तहसील की गुगुलडोह (मानेगांव) में प्रस्तावित मैंगनीज खदान पर सोमवार को जनसुनवाई हुई। स्थानीय लोगों, नेताओं एवं एनजीओ प्रतिनिधियों ने प्रस्तावित खदान का जमकर विरोध किया। उन्होंने प्रस्तावित प्रोजेक्ट के विरोध में कई तर्क दिए। कुछ मिलीजुली राय भी सामने आई। जनसुनवाई करीब तीन घंटे चली। 

आखिरी के आधे घंटे में उस समय जमकर हंगामा हुआ, जब  प्रकल्प प्रस्तावक मेसर्स शांति जीडी इस्पात एंड पावर प्रा. लि. के अध्यक्ष एसके पांडे ने कहा कि प्रस्तावित प्रोजेक्ट क्षेत्र में पेड़ों की गणना नियमानुसार की गई है। यह गणना स्थानीय ग्रामीणों की मदद से हुई है। करीब 36 हजार पेड़ों पर नंबर लिखे गए हैं। इस पर कांग्रेस नेता एवं पंचायत समिति, रामटेक के पूर्व उपसभापति उदयसिंह उर्फ गज्जू यादव ने कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि आप जनता को गलत जानकारी दे रहे हैं। यादव ने सवाल उठाया कि क्या वनक्षेत्र के पेड़ों की गूगल मैंपिंग के आधार पर गणना की गई? किस आधार पर मान लिया गया कि संबंधित क्षेत्र में केवल 36 हजार पेड़ हैं। जबकि प्रोजेक्ट के कारण दो लाख पेड़ काटे जाने की आशंका है।  

इसके बाद ग्रामीणों और राजनीतिक लोगों ने प्रस्तावित प्रोजेक्ट के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। ग्रामीणों ने कहा कि संबंधित वन क्षेत्र में पेड़ों पर कोई नंबर नहीं लिखे गए हैं। कंपनी के प्रतिनिधि भ्रामक जानकारी दे रहे हैं। इसके बाद जमकर नारेबाजी होने लगी। लोगों ने कहा कि गुगुलडोह में किसी की दादागीरी नहीं चलने दी जाएगी। भारी हो-हंगामे के बीच अधिकारियों ने जनसुनवाई के समापन की घोषणा कर दी। 

जनसुनवाई के लिए अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी सुभाष चौधरी, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल (एमपीसीबी) की प्रादेशिक अधिकारी हेमा देशपांडे, उपप्रादेशिक अधिकारी राजेंद्र पाटील उपस्थित थे। इनके अलावा रामटेक की एसडीएम वंदना सवरंगपते, तहसीलदार हंसा मोहने एवं थानेदार हृदयनारायण यादव भी उपस्थित रहे।

राजनीतिक क्षेत्र से प्रमुख रूप से कांग्रेस नेता उदयसिंह उर्फ गज्जू यादव, पूर्व विधायक एवं भाजपा नेता डीएम रेड्‌डी, प्रहार संगठन के रमेश कारामोरे, भाजपा के राजेश ठाकरे एवं शिवसेना के संजय झाड़े, विकेंद्र महाजन उपस्थित रहे। इस समय स्थानीय ग्राम पंचायत के पदाधिकारियों, पूर्व पदाधिकारियों एवं गज्जू यादव समर्थकों की भारी उपस्थिति रही। इनमें शिवनी-भोंडकी के सरपंच विजय भूरे, किरनापुर (चोखाला) के सरपंच कृष्णा उइके कृषि उत्पन्न बाजार समिति, रामटेक के संचालक रणवीर यादव, शरद डडूरे, रमेश मिसार, शंकर अहाके,  सचिन खागर, चंद्रकांत नंदनवार, गोपी सोनवाने, देवा वाडीभस्मे, सुशील रहाटे, अमर तरारे, महादेव मेश्राम, चिंधू वजाले, महेंद्र दिवटे (पूर्व सरपंच भंडारबोड़ी), दिनेश परतेती, बारसु कुंभरे, नितेश मर्सकोल्हे, मोरेश्वर कुंभरे, सिकंदर कोकोडे, विक्की तांडेकर, श्रावण खंडाते, आकाश परतेती, लक्ष्मण शिवरकर, हिमांशु तरारे, सुरेंद्र वरकडे, दर्शन वक्कलकार, विजय सहारे, जगदीश ठाकरे, विनायक बरडे, माणिक बरडे, शालिक धुर्वे, संजय सहारे, बंटी धुर्वे, सचिन बेंद्रे, आदेश बुराडे, नंदू तरारे, पुरुषोत्तम दरवई, आकाश डोनारकर आदि मौजूद रहे।

प्रस्तावित प्रोजेक्ट के विरोध में कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाली एनजीओ अजनिवन की अनुसया काले, डॉ. जयदीप दास, श्री देशपांडे की उपस्थिति रही। इनके अलावा स्थानीय सौंदर्य सृष्टि संस्था के ऋषि किंमतकर, श्री तिरबुड़े एवं गौरव अग्रवाल मौजूद रहे।

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आदिवासियों को दो-चार एकड़ मुश्किल, निजी कंपनी को 450 एकड़ दे रहे : यादव*

जनसुनवाई में कई प्रतिनिधियों ने विचार व्यक्त किए। कई ने अधिकारियों को निवेदन-पत्र दिया। गज्जू यादव ने सवाल उठाया कि 2018 के प्रस्ताव को दोबारा क्यों लाया जा रहा है? जबकि इस प्रस्ताव की अवधि 2021 में समाप्त हो चुकी है। यादव ने पूछा कि गुगुलडोह में खदान के लिए सरकारी कंपनी का प्रस्ताव भी आया था। उस पर किसी जनप्रतिनिधि ने फॉलोअप नहीं लिया। अब किसके राजनीतिक दबाव में निजी कंपनी को मंजूरी देने की होड़ लगी है? अगर सरकारी कंपनी खदान लेती तो किसानों को पूरा मुआवजा एवं उनके परिजनों को अच्छी नौकरी एवं स्वास्थ्य सुविधा मिलती। यहां तो एक-दो लोगों के लाभ के लिए पूरा जंगल तबाह करने की कोशिश की जा रही है। वन्यप्राणी जंगल छोड़कर कहां जाएंगे?

गज्जू यादव ने यह भी कहा कि किसी भी खदान की लीज नीलामी के आधार पर दी जाती है। गुगुलडोह के मामले में यह अस्पष्ट है। आज जबकि आदिवासियों को खेती की दो-चार एकड़ जमीन का पट्टा तक आसानी से नहीं मिलता, तब किसी प्राइवेट कंपनी को 450 एकड़ का 200 साल पुराना जंगल क्यों सौंपने की जिद है? 

पुरानी खदानें बंद कीं, नए पर जोर क्यों : रेड्‌डी

भाजपा नेता एवं पूर्व विधायक डीएम रेड्डी ने कहा कि गुगुलडोह के मामले में वन अधिकार कानून का पालन नहीं हो रहा। उन्होंने सवाल उठाया कि इस कानून के कारण कई पुरानी खदानें बंद कर दी गईं। ऐसे में नई खदानों में रुचि क्यों ली जा रही है? अन्य लोगों ने भी राय व्यक्त की। 

प्रस्तावित प्रोजेक्ट में कई बातें छिपाईं : कारामोरे

प्रहार संगठन के रमेश कारामोरे ने कहा कि निजी खदान परिसर की दुर्गती देखनी हो तो किरणापुर-काचुरवाही की खदान को देख लो। कारामोरे ने आरोप लगाया कि कंपनी ने प्रस्तावित प्रोजेक्ट में कई बातें जानबूझकर छिपाई हैं।

एनजीओ ने कहा- सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का पालन हो

एनजीओ प्रतिनिधि जयदीप दास ने कहा कि एक रात में जंगल तैयार नहीं कर सकते। गुगुलडोल का पर्यावरण मूल्यांकन नहीं किया गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का पालन होना चाहिए।  अनुसया काले ने कहा कि गुगुलडोह में कई लोग मटके आदि बनाकर आजीविका चलाते हैं। खदान खुलने से यहां की मिट्‌टी प्रदूषित होगी। क्षेत्र में आदिवासी मंदिर भी हैं। प्रदूषण का उन पर भी बुरा असर होगा।

उठी जनता की आवाज -किसानों का भला कौन करेगा? 

क्षेत्र के जानकार लोगों ने भी अलग-अलग विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि खदान खुलने के बाद मानव-वन्यप्राणी संघर्ष बढ़ेगा। खदान से नाममात्र का अस्थायी रोजगार मिलेगा। इस बीच एक आदिवासी महिला ने कहा कि उसे गुगुलडोह में खदान नहीं चाहिए। अगर खदान खुली तो वह जहर खा लेगी। कई स्थानीय महिलाओं ने प्रस्तावित प्रोजेक्ट का विरोध किया। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि सरकार, प्रशासन वनक्षेत्र के किसानों की चिंता नहीं कर रहे। यहां 100 साल में भी सिंचाई सुविधा विकसित नहीं की गई।

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